सोमवार, 24 नवंबर 2008

कवि व्यथा !!!




(१)
देश स्वतंत्र है
कवि आज भी है
परतंत्र
कलम उसकी है बंधी
विवशताओं से घिरा
हो गया है लाचार
कलम के साथ-साथ
जकडा है मन
लिखता है वो
जो लिखवाते हैं
कहता है वो
जो कहलवाते हैं
यहाँ तक कि
सोचता भी वही है
जो लोग चाहते हैं
देख-देख सबकी दुर्दशा
चुप रहता है
ऊपरी ख़ुशी में जीता है
(२)
प्रेयशी के गाल
मुझे नहीं दिखते लाल
उसकी जुल्फें
न बादलों कि झलक देती हैं
न रातों कि
उसके बालों का पानी
याद नहीं दिलाता
मोतियों कि
उसकी कजरारी आँखें
हिरनी सी दिखती नहीं
उसके मुख को,मैंने दी नहीं
चाँद कि उपमा
मैं करता हूँ चेष्टा
पर उसकी वेणी
नागिन की समता
पा नहीं सकती
जब-जब देखता हूँ उसे
दिखती है मानवी ही
क्या मेरा कवि होना व्यर्थ है?
(३)
कवि होना
है एक अभिशाप
इनकी है अलग दुनिया
समाज से कटे
अपने-आप में सिमटे
रहते हैं ये
हर वास्तु को देहते हैं
इतने गौर से
कि थम जाती हैं
उनकी साँसें
लोग कहते हैं
ये दूर-दूर रहते हैं
और
ये कहते हैं
लोग पास नहीं आते
खैर, इसी मुगालते में
दोनों एक-दुसरे से कट जाते हैं!

17 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

शैली जी
बहुत सुंदर सचित्र रचना . लिखती रहिये. आभार

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुंदर सचित्र रचना।बधाई।

Ashish Khandelwal ने कहा…

बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति..

प्रकाश गोविंद ने कहा…

प्रिय शैली जी
आपकी कवितायें पढीं ! मन को अच्छी लगीं ! मेरी हार्दिक शुभकामनाएं!

आज जब की सारे खंभे चरमराये हुए से हैं ! बाजारवाद ने जीवन को दूषित और कुंठित कर रखा है ! ऐसे में "कवि और कविता" पर कब तक असर न होगा ?
कविता लिखना कोई सहज कर्म नहीं !
कई स्थापित कवियों के लिए तो
एक ऐतिहासिक घटना ! "लिख मारा भाई आज तो एक ठो......." की उन्मादी घोषणा के बाद महीनों स्थगित रहते हैं ढेरों कविगण और करते रहते हैं ढेर सारे काम ! काम का सिर्फ एक ही अर्थ है - जिससे नकद मिल सके दाम !

ऐसा कब होगा कि
कविता हमारी आत्मा का ही हिस्सा लगे
जैसे पंछियों में पंख,
नदियों में जल
या जैसे आकाश में बादल होते हैं
ऐसा क्यों न हो कि कविता
हम सबकी रोजमर्रा की आवश्यकता नजर आए
जैसे सुबह का अखबार,
चाय का प्याला
या मित्र से मुलाकात और गपशप
ऐसा क्या नहीं हो सकता कि कविता
हमारे भीतर दबी व्याकुलता,
आकांक्षा और पीड़ा
मानव मन की अभिव्यक्ति का
दस्तावेज बन जाए !!

आपकी कवितायें पढ़कर माधव मधुकर जी के एक गीत की याद आ रही है जो कि मुझे अत्यन्त प्रिय है -

मैं गीत बेचकर घर आया
सीमेंट ईंट लोहा लाया
कवि मन माया में भरमाया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना !

जन्मा था आंसू गाने को
खोया झूठी मुस्कानों में
भीतर का सुख खोजता फिरा
बाहर की सजी दुकानों में
मै अश्रु बेचकर घर आया
प्लास्टिक के गुलदस्ते लाया
अपनी आत्मा को बहकाया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना !

शब्दों - शब्दों सौन्दर्य गढा
नगरों - नगरों नीलाम किया
संतों की सांगत छोड़ किसी
वेश्या के घर विश्राम किया
मैं प्यार बेचकर घर आया
चुटकी भर सुविधाएं लाया
क्या करना था क्या करवाया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना !

सारे दोषों को ढके फिरा
शब्दों की शिल्पित चादर से
गोरे कागज़ काले करता
टेढे - मेढे हस्ताक्षर से
मैं शर्म बेचकर घर आया
गहरे रंग का परदा लटकाया
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना !!!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

यह मेरा दुर्भाग्य रहा की २४ तारीख की पोस्ट आज तक नहीं पढ़ पाया /कवि की व्यथा आपने वर्णन की है बिल्कुल इसी तरह कवि की व्यथा कभी भर्तहरी जी ने भी हजारों साल पूर्व की थी और उस जमाने के राजों महाराजों को कोसा था और यह भी कहा था की यदि मुक्ता {{ मुक्ता मोती को कहा जाता है यदि किसी का नाम हो और वो बुरा मान जाए इसलिए स्पष्ट करना पड़ा }} की कीमत ये लोग नहीं पहिचानते तो इससे उसकी कीमत कम नहीं हो जाती उन्होंने कवि की तुलना मुक्ता से की थी /

BrijmohanShrivastava ने कहा…

यह मेरा दुर्भाग्य रहा की २४ तारीख की पोस्ट आज तक नहीं पढ़ पाया /कवि की व्यथा आपने वर्णन की है बिल्कुल इसी तरह कवि की व्यथा कभी भर्तहरी जी ने भी हजारों साल पूर्व की थी और उस जमाने के राजों महाराजों को कोसा था और यह भी कहा था की यदि मुक्ता {{ मुक्ता मोती को कहा जाता है यदि किसी का नाम हो और वो बुरा मान जाए इसलिए स्पष्ट करना पड़ा }} की कीमत ये लोग नहीं पहिचानते तो इससे उसकी कीमत कम नहीं हो जाती उन्होंने कवि की तुलना मुक्ता से की थी /

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

हे राम....आपने तो कवियों को बदनाम ही कर दिया....अब कल से हम कुछ लिखें कि ना लिखें.....आपने तो मेरे जैसे भूत को सोच में डाल दिया हाय...हाय....!!

स्वाति ने कहा…

बहुत खूब , जितना अच्छा आप लिखती है चित्र भी उतने ही अच्छे और बेहतरीन लगाए है !

BrijmohanShrivastava ने कहा…

अगली कविता का इंतज़ार है

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

कवि होना
है एक अभिशाप
इनकी है अलग दुनिया
समाज से कटे
अपने-आप में सिमटे
रहते हैं ये

बहुत सही कहा आपने !!!!!!!

shivraj gujar ने कहा…

देश स्वतंत्र है
कवि आज भी है
परतंत्र
bahut badiya, kavi ki vivsta ko bahut achhi tarah ukera hai. leikn ye galat hai ki kalam bandhi hai. kalam ko khuli rahane do.
shivraj gujar

vijay yadav ने कहा…

आप का ब्लॉग काफ़ी सुंदर है। इसकी जीतनी भी तारीफ़ की जाय कम है।

कडुवासच ने कहा…

... प्रसंशनीय रचना है।

Sumit Pratap Singh ने कहा…

सादर ब्लॉगस्ते,



आपका यह संदेश अच्छा लगा। क्या आप भी मानते हैं कि पप्पू वास्तव में पास हो जगाया है। 'सुमित के तडके (गद्य)' पर पधारें और 'एक पत्र पप्पू के नाम' को पढ़कर अपने विचार प्रकट करें।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Ait sunadr ek or kavit prateekshit hai

Vivek Sharma ने कहा…

bahut achhi rachna hai aapki shailiji.aise hi likhte rahiyea

Unknown ने कहा…

shellyji bhot hi acchi rachna hai aapki its amazing