1
एक हम मिले
दूसरे दिन करीब आ गए
तीसरे दिन और और
और आ गए करीब
चौथे दिन समां गए एक दूसरे में
और फिर आज ....
कहाँ हो तुम
कहाँ हूँ मैं
दोनों को ख़बर नही
२
रिश्तों की भीड़ में
अकेला खड़ा में
ढूंढ़ रहा उसे
जो सच में
रिश्ता हो
३
रिश्तों की दुनिया से
चुराया मैंने
एक प्यारा सा रिश्ता
फूलने - फलने लगा यह
मेरे भीतर और
साथ - साथ
फुला -फला मैं भी
चढ़ता गया
उत्कर्ष की सीढियां
पर , जब ऊपर पहुँचा
जाने कब से
मेरे रिश्ते की बेल
सूखी मुरझाई
पैरों तले कुचली थी
रविवार, 20 जुलाई 2008
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