रविवार, 9 नवंबर 2008

साहित्य प्रहरी पत्रिका में छपी कविता - वृद्धा की व्यथा

8 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

इस व्‍यथा को बार बार देखने और चिंतन की आवश्‍यकता है । आभार ।

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

oh....
आपकी प्रस्तुति को नमन
साधुवाद

प्रकाश गोविंद ने कहा…

"सुन लेना फरियाद किसी की,
होती है इमदाद बड़ी
आंसू को जो कन्धा दे दे,
चारों तीर्थ नहाता है" !!!

अभिषेक मिश्र ने कहा…

सही कहा आपने- 'कितना दरिद्र हो गया हमारा वर्तमान'. फ़िर भी कविता को पुनः टाइप कर देती तो थोडी सुविधा हो जाती. स्वागत अपनी विरासत को समर्पित मेरे ब्लॉग पर भी.

Bahadur Patel ने कहा…

achchhi tarah se apane likha.badhai.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है . आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा और बहुत खुशी है कि आप जबलपुर से है और ब्लागिंग कर रही है . वृद्धा के बारे में रचना प्रस्तुति बहुत बढ़िया लगी . धन्यवाद. कृपया मेरे ब्लॉग का अवलोकन करे.
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर

http://mahendra-mishra1.blogspot.com
http://nirantar1.blogspot.com
http://prahaar1.blogspot.com

सचिन मिश्रा ने कहा…

Bahut accha likha hai.

राज भाटिय़ा ने कहा…

वृद्धा की व्यथा आज का एक सच !आप ने कविता के माध्यम से बहुत ही सही व्यथा लिखी.
धन्यवाद