गुरुवार, 28 अगस्त 2008
सोमवार, 18 अगस्त 2008
ससुराल
भर आंखों में
रंगीले सपने
छोड़ के गुडिया
घर को अपने
पहन के जोड़ा सुहाग का
सजा कर माथे पर बिंदिया
लगा के आंखों में काजल
आ पहुँची ससुराल
बिलख रहे थे मम्मी - पापा
एक तरफ़ खड़ा था भइया
एक तरफ़ थी बहाना
तोड़ दिया उसने तो मोह पुरानी सखियों
का
मन में बज उठी तरंगें
ले रहा अरमान हिलोरें
रह - रह
मुस्काते हैं नैन
आई है पति के संग की रैन
पर हाय रे !
ससुराल की दुनिया ऐसी न्यारी है
अन्दर तो काँटोंकी फुलवारी
ऊपर से हरी क्यारी है
सासु की आंखों में ममता का है नाम नही
ननद तो जैसे वैरी जनम- जनम की
कितनी भी सेवा कर ले
शवसुरको तुष्टि तुष्टि नही
बिस्तर के सिवा पति को
उसकी पहचान नही
बाहर लोक लाज में बंधी
अन्दर की रिश्तों जंजीरों में
जाए कहाँ वह
पिता का घर भी बंद हुआ
घुट - घुट कर वह जी रही इस हाल में
लोग समझ बैठते
सुखी है ससुराल में
रंगीले सपने
छोड़ के गुडिया
घर को अपने
पहन के जोड़ा सुहाग का
सजा कर माथे पर बिंदिया
लगा के आंखों में काजल
आ पहुँची ससुराल
बिलख रहे थे मम्मी - पापा
एक तरफ़ खड़ा था भइया
एक तरफ़ थी बहाना
तोड़ दिया उसने तो मोह पुरानी सखियों
का
मन में बज उठी तरंगें
ले रहा अरमान हिलोरें
रह - रह
मुस्काते हैं नैन
आई है पति के संग की रैन
पर हाय रे !
ससुराल की दुनिया ऐसी न्यारी है
अन्दर तो काँटोंकी फुलवारी
ऊपर से हरी क्यारी है
सासु की आंखों में ममता का है नाम नही
ननद तो जैसे वैरी जनम- जनम की
कितनी भी सेवा कर ले
शवसुरको तुष्टि तुष्टि नही
बिस्तर के सिवा पति को
उसकी पहचान नही
बाहर लोक लाज में बंधी
अन्दर की रिश्तों जंजीरों में
जाए कहाँ वह
पिता का घर भी बंद हुआ
घुट - घुट कर वह जी रही इस हाल में
लोग समझ बैठते
सुखी है ससुराल में
रविवार, 3 अगस्त 2008
शुक्रवार, 1 अगस्त 2008
चुप्पी का शोर
नदी निर्झर नाले
पर्वत धरा अम्बर निराले
खामोश सभी , सभी चुप हैं
उठती तरंगें , उठा हिलोर है
आती कहाँ से ये कहाँ इसका छोर है
गुमसुम है सब, सब खामोश है
हाँ , दबी- दबी सी चीख
दबा-दबा- सा शोर है
अशांत मन ,अशांत नज़र है
मन में उठा हिलोर
यह हाहाकार भी मन में मचा है
अवसाद जब भी गाढा हुआ है
चुप्पी का शोर मचने लगा है
पर्वत धरा अम्बर निराले
खामोश सभी , सभी चुप हैं
उठती तरंगें , उठा हिलोर है
आती कहाँ से ये कहाँ इसका छोर है
गुमसुम है सब, सब खामोश है
हाँ , दबी- दबी सी चीख
दबा-दबा- सा शोर है
अशांत मन ,अशांत नज़र है
मन में उठा हिलोर
यह हाहाकार भी मन में मचा है
अवसाद जब भी गाढा हुआ है
चुप्पी का शोर मचने लगा है
वक्त की रफ़्तार
तेज़ी से सरकता समय
मुझे करता है व्यथित
मैं रोकना चाहती हूँ
इसकी रफ़्तार
जीना चाहती हूँ
हर पल को
महसूसना चाहती हूँ इसे
ये वक्त थम -थम कर गुजरे
ताकि बस जाए हर लम्हा
मेरी निगाहों में
हमेशा तेरे - मेरे ज़ज्बातों में
मेरी हर साँस रखे याद
गुज़रे कल को
हर व्यक्ति बन जाए
मेरे लिए खास
मुझे करता है व्यथित
मैं रोकना चाहती हूँ
इसकी रफ़्तार
जीना चाहती हूँ
हर पल को
महसूसना चाहती हूँ इसे
ये वक्त थम -थम कर गुजरे
ताकि बस जाए हर लम्हा
मेरी निगाहों में
हमेशा तेरे - मेरे ज़ज्बातों में
मेरी हर साँस रखे याद
गुज़रे कल को
हर व्यक्ति बन जाए
मेरे लिए खास
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