रविवार, 5 अक्तूबर 2008

गाँधी की बातें






२ अक्तूबर यानी गांधीजी का जन्मदिन आया और खामोशी से चला गया। न, न खामोशी शब्द पर आपत्ति की आवशयकता नही है क्योकि सरकारी छुट्टी , धरना, प्रदर्शन से खामोशी नही टूटती। इस खामोशी का मतलब है एक बार फ़िर गाँधी जी नकारे गए। उनके जन्मदिन पर कितने लोगों ने उनसे कुछ सिखा , कितनो ने उनके मूल्यों को अपनाया या अपनाने की ठानी। जवाब नकारात्मक है न। इस लिए मैंने कहा की सब कुछ खामोशी से हुआ। क्योकि परिस्थितिया बदल चुकी हैं ,और चुनौतियाँ भी , पर ये पहले से ज्यादा ख़राब हो गईं है। पहले( गाँधी जी के समय में ) हमारे पास मुख्यरूप से एक ही चुनौती थी, स्वाधीन कराना । बाकि यह विशवास था कि आजाद भारत में जब अपने लोगों का शासन होगा तो सारी बाधा पर तो विजय पा ही लेंगें ( ऐसा नही हुआ उसके कारण अलग थे ) आज कि स्थिति ये है कि हर क्षेत्र में अलग प्रकार कि चुनौतियाँ हैं । जब भी दिक्कत बढती है तो गाँधी याद आतें हैं , लगता है काश! उनके पदचिह्नों पर चले होते तो ऐसी मुश्किलें नही आती। यहाँ तक तो ठीक है पर जब देखतें हैं कि आज के युवा " मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी " जैसे जुमले उछालते हैं तो उनकी बुद्धि पर पर तरस आता है। आज भी ऐसे महानुभाव मिलते हैं जो ये कहतें हैं कि गाँधी के कारण ही तो देश विभाजित हुआ, या कहने वाले भी कम नही हैं कि गाँधी जी ने मुस्लिमो और हरिजनों को जरुरत से ज्यादा प्रश्रय दिया है। ऐसा कहने वाले ये भूल जातें है कि वे ख़ुद कितनी गन्दी मानसिकता के साथ रहतें हैं और उनका ये कथन हमारे देश के मूल्यों और सिद्धांतों के विपरीत हैं अस्तु अभी गांधीजी के जीवन की कुछ झलकियाँ -


































इनको देख कर अहसास तो बहुत कुछ हो सकता है पर तभी जब कोशिश की जाए । नई पीढी से यह उम्मीद है की एक बार गाँधी दर्शन को समझने कि कोशिश तो करे उसे भी मुन्ना भाई कि तरह देर से ही सही पर फायदा होगा , इसकी गारंटी है! तो आजमा कर देखतें हैं ...

19 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

समय के साथ चलने में ही सब की भलाई है।

ambrish kumar ने कहा…

photo bahut achhe hai .

BrijmohanShrivastava ने कहा…

लेख भी बहुत अच्छा और चित्र भी बहुत अच्छे /पूरा लेख पढ़ा /मुन्ना भाई की तरह कोई नहीं सीखता न ही आज तक कोई सीखा है फ़िल्म बन गई पैसा पैदा हो गया बात खत्म /आपने लिखा ""विश्वास था कि आज़ाद भारत में जब अपने लोगों का शासन होगा [[[तो सारी बाधाओं पर विजय पालेंगे ]]] मुझे तो ऐसा लगता है कि शायद सोचते थे कि अंग्रेज चले जायेंगे तब हम अंग्रेजों की तरह रहेंगे और अंग्रेजी बोलेंगे वे स्वम जुल्म करते थे भारतीयों को भारतीयों पर जुल्म करने ही नहीं देते थे वह बाधा समाप्त हो जायेगी

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

gandhiji sadaiv prasangik hain. unkey vicharon aur sidhanton per amal karkey anek samasyaein hal ho sakti hain-
आज कि स्थिति ये है कि हर क्षेत्र में अलग प्रकार कि चुनौतियाँ हैं । जब भी दिक्कत बढती है तो गाँधी याद आतें हैं , लगता है काश! उनके पदचिह्नों पर चले होते तो ऐसी मुश्किलें नही आती।

apney bahut din baad likha lekin achcha likha. gandhiji aur aaj key halat ko maine ek gazal mein abhivyakt kiya hai. aap jaroor dekhein aur rai bhi dein.

httP://www.ashokvichar.blogspot.com

श्यामल सुमन ने कहा…

तस्वीरों का संकलन अच्छा है। कथ्य भी प्रासांगिक है। गाँधी जैसे व्यक्तित्व की जरूरत मानवता को हमेशा रहेगी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

हिन्दीवाणी ने कहा…

स्वागत है। निरंतरता बनाए रखें।

Smart Indian ने कहा…

गांधी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने आज़ादी से पहले थे. सुंदर पोस्ट, धन्यवाद!

Sumit Pratap Singh ने कहा…

waaaaaaaaahhhhhhhhhh...

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सार्थकआलेख हिन्दी चिठ्ठा जगत में आपका बहुत स्वागत है निरंतरता की चाहत है
मेरा आमंत्रण स्वीकारें समय निकाल कर मेरे चिट्ठे पर भी पधारें

admin ने कहा…

बहुत खूब। आपने तो जैसे गांधी जी के युग में ही पहुंचा दिया। उस महानुभूति का स्‍मरण ही मन को एक नये उत्‍साह से भर देता है।

प्रकाश गोविंद ने कहा…

अति सुंदर !
कुछ ऐसा है पंक्तियों में जो दिल को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है !
"गाँधी"
मोहन दास करमचंद गाँधी उस महात्मा का नाम है जिसे दो ध्रुवों के बीच समन्वय स्थापित करने की कला में महारत हासिल थी !
वह अपने व्यवहार में संत था और
विचारों में क्रांतिकारी !
वह इश्वर में अनन्य आस्था रखने वाला आस्तिक था तो मंदिरों के रीति रिवाज के विरुद्ध खड़ा होने वाला नास्तिक भी !
वह महात्मा सनातनी हिंदू था ,
लेकिन उसकी प्रार्थना सभाओं में सारे धर्मों की प्रार्थनाएं गूंजती थीं !
वह अहिंसा को अपने राजनीतिक - सामाजिक जीवन का मूल मंत्र मानकर चलता था तो करो या मरो का नारा भी दे सकता था !
वह इतना व्यस्त था की उसके पास अपने लिए भी समय नही था और उसके पास इतना समय था की हर किसी से मिल लेता था |
वह इतना खुला था की उसके घर और आश्रम के दरवाजे सबके लिए खुले रहते थे ,
इतना अधिक रहस्यमयी था की उसके व्यक्तित्व की गुत्थियाँ आज भी उलझी हैं !
वह देवता नही था लेकिन देवदूत बन गया था ! ................ .
क्या - क्या लिखूं , कितना लिखूं ?
क्या गांधी सिर्फ़ एक नाम है ?
नही ! गांधी नाम है क्रान्ति का ....... एक विचार का .......... और विचार कभी मरते नही !
गांधी की प्रासंगिकता हमेशा रहेगी
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
लिखते रहिये !

हां एक और बात ...... आपकी ये पंक्तियाँ भी दिल को छू गयीं - 'ऐसा क्यों न कुछ कर जाएँ हम , चले जाने पर भी याद आयें हम !'

कभी टाइम मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आईये !

तीसरा कदम ने कहा…

dekhiye mera manna hai ki musibat aye ya na aye phir bhi log gandhiji ko yad kareinge.aur unke path per bhi aaj chalne wale kai log hai aur bane raheinge.
achha laga vichar vyapak hai.good.

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

िवजयदशमी पवॆ की शुभकामनाएं ।

दशहरा पर मैने अपने ब्लाग पर एक िचंतनपरक आलेख िलखा है । उसके बारे में आपकी राय मेरे िलए महत्वपूणॆ होगी ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

shelley ने कहा…

aaj ki aawaj
aapka naamto malum nahi par achchhi tippni ki hai aapne, achchhe lage aapke vichar. par aapke blog par pahuchna sambhav nahi ho paya isliye...

Mukesh ने कहा…

बहुत अच्छा....

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

आपने बहुत अच्छा िलखा है । अापकी प्रितिक्र्या को मैने अपने ब्लाग पर िलखे नए लेख में शािमल िकया है । आप चाहें तो उसे पढकर अपनी प्रितिक्रया देकर बहस को आगे बढा सकते हैं ।

http://www.ashokvichar.blogspot.comं

कडुवासच ने कहा…

खामोशी से तो सिर्फ अन्नाय व अत्याचार को गुजरते देखा जा सकता है पर अब लोग गाँधी जी व उनके सिद्धाँतों को भी देख रहे हैं, अन्दाजा लगाया जा सकता है इस देश मे क्या .........!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Der se pahuncha hoon is post par. Sahi lage vichar aapke. Maine bhi Gandhiji par apni kuch baatein rakhi hain, aapki pratikriya ka intejar rahega.