
बिहार की बाढ़ ने हमें झकझोर कर रख दिया है। यूं तो बाढ़ हर साल वहां अपना रौद्र रूप दिखाती हैं। पर इस बार की स्तिथि ज्यादा ख़राब रही । देश भर में लोग इनके लिए चंदा इकठा कर रहें हैं।
सही बात यह है कि वहां पैसे के साथ- साथ कर्म करने वालो कि जरुरत है । पैसे से ख़रीदे सामानों को उन असहायों के पास पहुचने के लिए किसी कि जरुरत होती है । पैसे तो फ़िर भी कुछ न कुछ पहुँच ही जाते हैं । बाढ़ का पानी उतरने के बाद कि चुनौतियो के समय तो मानव के मदद कि जरुरत होती है ।
अपने ऑफिस की तरफ़ से इकठ्ठा होने वाले फंड के लिए आज चंदा मांगने मार्केट में गईकिसी भी काम के लिए चंदा महज का ये मेरा पहला मौका था । मेरी उम्मीद के बिपरीत लोगो ने हमें दुत्कार कर भगाया। एक अखबार का नाम जुरा था हमारे साथ हम चेक बुक भी साथ में लेकर चल रहें थें । फ़िर भी लोग हमें हिकारत से देख रहें थे। बड़े - बड़े शो रूम से जब दस बार कहने पर १० / का नोट निकल रहा था तो हमें बड़ा बुरा लग रहा था ।
पर बाद में कुछ ऐसे उदाहरन भी मिले जब यकीं हुआ कि नही ऐसे लोग भी हैं जो असहायों की मदद करना जानतें हैं। सड़क के किनारे चाय बेचने
वाली एक ७५-८० साल कि अम्मा ने हमें बुला कर पैसे
दिये। हम उनके आभारी हुआ बिना नही रह सकें .

लोगों में आ रही संवेदनहीनता का क्या किया जे नही मालूम .पर लोग पहल ख़ुद से नही करतें सोचतें हैं कोई और करेगा या कि में पहल्रे क्यों ? और लोग करें। अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की आदत कब जायेगी