शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

चुप्पी का शोर

नदी निर्झर नाले
पर्वत धरा अम्बर निराले
खामोश सभी , सभी चुप हैं
उठती तरंगें , उठा हिलोर है
आती कहाँ से ये कहाँ इसका छोर है
गुमसुम है सब, सब खामोश है
हाँ , दबी- दबी सी चीख
दबा-दबा- सा शोर है
अशांत मन ,अशांत नज़र है
मन में उठा हिलोर
यह हाहाकार भी मन में मचा है
अवसाद जब भी गाढा हुआ है
चुप्पी का शोर मचने लगा है

10 टिप्‍पणियां:

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

Thanks Shelley Khatri ji, for coming up on my blog with your valuable comments. over all, i just saw you blog and creations, In real sense, I have no words to comments that you have written with just a good sense of literature and you used your words where they should be used.
Really i like it and desirous to get your all new creations.

mujhe aap logon ke amulya sujhavon ki zaroorat padti rahegi.

...Ravi
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/
http://ravi-yadein.blogspot.com/

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है।

अवसाद जब भी गाढा हुआ है
चुप्पी का शोर मचने लगा है

Sanjay ने कहा…

khamosi ka shor sunne ke liye antarman ke karn chahiye. bahut khub Sheliji ....

Smart Indian ने कहा…

"अवसाद जब भी गाढा हुआ है
चुप्पी का शोर मचने लगा है


बहुत सुंदर लिखा है. ऐसा ही होता है. धन्यवाद.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अवसाद जब भी गाढा हुआ है ..
बहुत उम्दा ...शुभकामनाएं !

डा ’मणि ने कहा…

सादर अभिवादन
पहले तो हिन्दी ब्लोग्स के नए साथियों में आपका सहृदय स्वागत है
दूसरे आपकी सशक्त रचना के लिए आपको बहुत बधाई

चलिए आज मैंने अपने ब्लॉग पे एक गीत डाला है
परिचय के लिए उसकी कुछ पंक्तियाँ देखिये

और कुछ है भी नहीं देना हमारे हाथ में
दे रहे हैं हम तुम्हें ये "हौसला " सौगात में

हौसला है ये इसे तुम उम्र भर खोना नहीं
है तुम्हें सौगंध आगे से कभी रोना नहीं
मत समझना तुम इसे तौहफा कोई नाचीज है
रात को जो दिन बना दे हौसला वो चीज है

जब अकेलापन सताए ,यार है ये हौसला
जिंदगी की जंग का हथियार है ये हौसला
हौसला ही तो जिताता ,हारते इंसान को
हौसला ही रोकता है दर्द के तूफ़ान को

हौसले से ही लहर पर वार करती कश्तियाँ
हौसले से ही समंदर पार करती कश्तियाँ
हौसले से भर सकोगे जिंदगी में रंग फ़िर
हौसले से जीत लोगे जिंदगी की जंग फ़िर

तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में

आपकी सक्रीय प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में
डॉ उदय 'मणि'
http://mainsamayhun.blogspot.com

डा ’मणि ने कहा…

प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद शैली जी ,
यही स्नेह बनाए रखें
मैने आपके ब्लॉग की काफ़ी सारी रचनाएँ पढ़ी हैं
आपको बहुत बहुत बधाई
डॉ उदय मणि

Pawan Kumar ने कहा…

Shelley ji
I came first time on ur blog.It was pleasent tour.what u wrote on ur blog is ultimate....I salute ur creativity and senses

अभिन्न ने कहा…

गुमसुम है सब, सब खामोश है
हाँ , दबी- दबी सी चीख
दबा-दबा- सा शोर है
अशांत मन ,अशांत नज़र है
मन में उठा हिलोर
यह हाहाकार भी मन में मचा है
अवसाद जब भी गाढा हुआ है
चुप्पी का शोर मचने लगा है
आपकी चुप्पी का शोर बहुत ही क्रन्तिकारी लगा

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

बहुत सुंदर रचना बधाई
हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है निरंतरता की चाहत है
समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें