नदी निर्झर नाले पर्वत धरा अम्बर निराले खामोश सभी , सभी चुप हैं उठती तरंगें , उठा हिलोर है आती कहाँ से ये कहाँ इसका छोर है गुमसुम है सब, सब खामोश है हाँ , दबी- दबी सी चीख दबा-दबा- सा शोर है अशांत मन ,अशांत नज़र है मन में उठा हिलोर यह हाहाकार भी मन में मचा है अवसाद जब भी गाढा हुआ है चुप्पी का शोर मचने लगा है
तेज़ी से सरकता समय मुझे करता है व्यथित मैं रोकना चाहती हूँ इसकी रफ़्तार जीना चाहती हूँ हर पल को महसूसना चाहती हूँ इसे ये वक्त थम -थम कर गुजरे ताकि बस जाए हर लम्हा मेरी निगाहों में हमेशा तेरे - मेरे ज़ज्बातों में मेरी हर साँस रखे याद गुज़रे कल को हर व्यक्ति बन जाए मेरे लिए खास
Bahut sentimental vichar dhara............
janti hun sentimental hona aaj ke hisab se thik nahi par hoon.
Aisa kyo n kuch kar jayan hum
chale jane par v yaad aayen hum.